चंद्रयान-3 की लैंडिंग: चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने पिछले मून मिशन चंद्रयान-2 से कई सिखें हैं। यहाँ देखते हैं कि ये दोनों मिशन कैसे अलग हैं, और इसरो ने कैसे बदलाव किए हैं:-
नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने भारत के तीसरे मून मिशन, चंद्रयान-3, को 14 जुलाई को लॉन्च किया था। 23 अगस्त को इसकी चंद्र पर लैंडिंग होनी है। इस समय का दर्शन देशवासियों के लिए बेसब्री से चल रहा है। चंद्रयान-3 बुधवार को शाम 6:04 बजे चंद्रकांतिनी साउथ पोल पर अवतरित होगा।
चंद्रयान-2 को लगभग 4 साल पहले, 22 जुलाई 2019 को चंद्रमा की ओर भेजा गया था, लेकिन यह चांद पर सफलतापूर्वक लैंडिंग करने में विफल रहा था। जब विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर था, तो उसका संपर्क नियंत्रण कक्ष से टूट गया था। इसके परिणामस्वरूप मिशन अवसादित हो गया था।
इसरो ने चंद्रयान-2 के असफलताओं से कुछ महत्वपूर्ण सिखें निकाली हैं और चंद्रयान-3 में कुछ परिवर्तन किए हैं:-
- चंद्रयान-2 में एक ऑर्बिटर, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर थे, जबकि चंद्रयान-3 में एक लैंडर मॉड्यूल (LM), प्रोपल्शन मॉड्यूल (पीएम) और एक रोवर शामिल है। चंद्रयान-3 में एक पेलोड भी होगा, जिसका नाम स्पेक्ट्रो-पोलारिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (SHAPE) है, जो पिछले मिशन में शामिल नहीं था। SHAPE का उद्देश्य चंद्रमा की सतह की अध्ययन करना है।
- चंद्रयान-2 में लैंडर के पास खतरे की चेतावनी के लिए कैमरे नहीं थे, लेकिन चंद्रयान-3 के लैंडर में दो बचाव कैमरे शामिल किए गए हैं। ये परिवर्तन किए गए हैं ताकि लैंडिंग के प्रक्रिया में सुरक्षा बढ़ सके।
- ISRO ने चंद्रयान-3 के लैंडर के लेग मैकेनिज्म परर्फॉर्मस की टेस्टिंग भी की है, जो कि इस मिशन के भाग में पहले मौजूद नहीं थे।
- इसके अलावा, लैंडिंग की गति को बढ़ाकर 2 मीटर प्रति सेकंड से 3 मीटर प्रति सेकंड किया गया है, जिससे कि लैंडिंग के दौरान भी सुरक्षा बढ़ी हो।
- चंद्रयान-3 में नए सेंसर्स शामिल किए गए हैं और विक्रम लैंडर में ज्यादा ईंधन डालकर भेजा गया है। चंद्रयान-2 में लैंडिंग के लिए 500 मीटर x 500 मीटर के क्षेत्र की पहचान करने की क्षमता थी, जबकि चंद्रयान-3 में यह 4 किलोमीटर x 2.5 किलोमीटर के क्षेत्र को पहचान सकता है।
- चंद्रयान-3 में लैंडर को चाहे जैसे भी लैंड हो, उसे अलग-अलग तरीकों से ऊर्जा प्रदान करने के लिए सोलर पैनल लगाए गए हैं। ISRO ने इसकी लैंडिंग को हेलिकॉप्टर और क्रेन के माध्यम से टेस्ट किया है।